6/29/2015

अतीत के पन्ने

कोई नहीं पढ़ता...
हाँ मैं भी नहीं  पढ़ती
बार - बार
खुद की लिखी
रचनाओं को
अतीत के उन पन्नों को
याद दिलाती है वो
फिर वही पल,
 फिर वही लम्हे
फिर गुजरती हूँ मै
उन्हीं भावनाओं से
बार - बार वहीं जाना
अब नहीं भाता मुझे
भूल जाना चाहती हूँ
अतीत के उन पन्नों को
जिन से गुजरते हुए
भावनाओं में बह कर
अपनी आकांक्षाओं को
उतारा था शब्दों में
मायने जिनके बदल गए...
यूँ भी पलट कर देखना
कोई समझदारी तो नहीं
हाँ...
भूल जाना ही  बेहतर होगा
हाँ....
भूल ही जाना चाहती हूँ मैं
अतीत के उन पन्नों को... !!

..... वैशाली......
29/6/2015
9.20am 

3 comments:

kapil said...

Nice

Surendra Behani said...

Better late than never. Great Vichar.

दिल की कलम से said...

Thanks Kapil ji n Surendra

Surendra your feedback is really too much valuable 4 me :)