7/23/2013

'झीनी साड़ी भीनी बदरिया' .......

झीनी साड़ी पर मचले हम ,
पहन कर यूँ इतराए !
बड़ी शान से जो निकले ,
देख बदरिया  मचलाए !

           दिल आया यूँ हमपर उनका ,
            बहके-बहके वो बरसाए !
             कहाँ छिपाए हम खुद को,
             कहीं 'मन्दाकिनी ' न बन जाये !!

लिया जो हाथों में चाय का प्याला ,
देख उन्होंने दिल अपना सम्हाला !
था यह शिकवा या शरारत , कहा-
तुमने बना दिया इसे ही 'मधुशाला ' !!

            भीगे हम- तुम जो साथ में ,
            मदहोशी सी छा जाये !
            मस्ती के आलम में भीगा तन-मन ,
             न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!
             न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!