9/27/2015

क्यूँ ??

क्यूँ भटकता है कोई ?
    अपनी जमीन छोड़ कर
    गैरों की राह में पनाह में

क्यूँ गिरता है कोई ?
   दूजे की बाँह में
   अपनो के आगोश से 

क्यूँ ढूंढता है कोई ?
    कांधा, सहारा के लिए
    खुद बेसहारा होकर

क्यूँ करता है आशा कोई ?
    रुमाल की, आँसू देने वाले से
    खुद उस से ही दुखी होकर

ऐ दिल मान जा कहा ....
    मत कर गैरो पे विश्वास
    यहाँ अपने ही अपने न हुए  !!


------- वैशाली -------
26/09/2015
2:35 Mid-Ni8

    
 

9/26/2015

दिल और दीप जलते हैं .....

बैरी सजन मुझे तड़पाए
सपनो को कुचल कर मुस्काए
जब जब सँजू मैं उसके लिए
जालिम तब तब आँख फिराए
रात खड़ी मैं लिए होंठो पे गीत
आए न साजन रैना यूँ ही गयी बीत
सताकर अनजान बनना है उनकी अदा
झट से बुरा मान जाते है वो सदा
कैसे समझाऊ कितना दुःख होता है मुझे
काश ! कसमें -वादे निभाने आते तुझे
कितना रोकूँ पर दिल कहाँ मानता है
छलक जाते है आँसू दिल कट जाता है
बस यूँ ही मुझे जीना होगा
खून के घूँट पीना होगा
कदर करोगे मेरे जाने के बाद
क्या करोगे जब आएगी मेरी याद
मेरी दीवानगी तुझको सताएगी
तेरी बेरुखी तेरा दिल जलाएगी
तब पछता  के कुछ न पाओगे
यादों में फिर जीना सीख जाओगे
खोकर लोग फिर कहाँ मिलते हैं
बस फिर दिल और दीप  जलते हैं  … !!

----- वैशाली ------
26 /09 /2015
11. 00 AM

9/23/2015

घुटन

भीड़ में घुटती हूँ मैं 
अकेले रहने दो मुझे 
कुछ नहीं भाता मुझको 
चाहे भूखा रहने दो मुझे 
जल - वायु है साथी मेरे

कोई साथ न रास आता मुझे 
जी करता उड़ जाऊ इस जग से 
करूँ विचरण मैं स्वच्छंद नभ में 
पर्वतों की ऊंचाई नाप लूँ 
चाँद पर एक जहाँ बसा लूँ 
काश ! कि यह हो पाता 
रहूँ वहाँ, जहाँ न कोई हो आता
अकेले आए हैं, है अकेले जाना
कुछ बरस साथ सिर्फ अपना पा जाना
बाकी दुनिया माया - जाल है 
अपने
सिर्फ कहने को
असलियत में हम कंगाल है !!
VAISSHALI 
14 /10 /2015 
11 :55 AM