10/03/2014

बड़ी हो गयी

जैसे  ही  बचपन  की  याद  आ  गयी,
चेहरे  पर  मुस्कान  छा  गयी 

काश  ! के  मैं   बड़ी  न   होती 
छोटी सी, बचपन में ही रहती 

बड़ो के कहना मानती रहती 
सही गलत न खुद पहचानती 

सबकी ख़ुशी में ख़ुशी ढूंढती 
झूठे  बहलाने  पर बहल  जाती 

सबकी प्यारी बनकर रहती 
अच्छी बच्ची फिर कहलाती 

ना  जाने क्यूँ  मुझमें समझ आ गयी 
सही गलत की पहचान पा गयी 

झूठे बहलावे से बहलती नहीं हूँ मैं 
मुखौटों  का सच अब जानती हूँ मैं 

शायद अब मैं  बड़ी हो गयी 
इसलिए मैं  अकेली हो गयी 

इसलिए मैं  अकेली हो गयी  !! 




2 comments:

Dr. Dhirendra Srivastava said...

शायद अब मैं बड़ी हो गयी
इसलिए मैं अकेली हो गयी ...aaahhh !
kash ! mai'n badi hi na hoti...

Vaisshali said...

haan sach ..kaash main badi na hoti...

thanks Dr Dhirendra ji