सदियों से चली आ रही परंपरानुसार कहा ही गया है कि "प्यार और सम्मान पर पहला हक परिवार के बुजुर्गो का है। हाँ ! यह सत्य है , पर ज़िन्दगी जैसे - जैसे आगे बढती है हमारे रिश्ते और विस्तृत होते चले जाते है। हर रिश्तो के अपने मायने है और उनको निभाने के तौर तरीके भी विभिन्न है। जैसे - माता-पिता से, पत्नी से, बहिन से,पति से दोस्तों से, रिश्तेदारों से ..इत्यादि।
हमारे देश में रिश्ते निभाने में विश्वास किया जाता है, हर पीढ़ी आने वाली पीढ़ी को यह जरूर सिखाने की कोशिश करती है। हर रिश्ते की अपनी अलग सीमाएँ होती है जिन्हें लांघना उचित नहीं होता है। इन अनेको रिश्तो में अपने अलग रंग और अलग भावनाएँ होती है। हमारे देश में तो दुश्मन को भी एक रिश्तेदार की तरह मानकर , दुश्मनी का रिश्ता भी बखूबी निभाया जाता है। कहीं रिश्ता सिर्फ सम्मान'का, कहीं दोस्ती का, कुछ खट्टे-मीठे , तो कुछ प्यार भरे होते है। कुछ रिश्ते ऐसे होते है जिन्हें आजतक कोई समझ नहीं पाया है, और उसे किसी एक भावना के साथ भी जोड़ा नहीं जा सकता है, जैसे की ..बहु का ससुराल वालो से रिश्ता, या दुसरे शब्दों में कहे तो " सास-बहु" का रिश्ता।
एक स्त्री जो बेटी, बहिन बनकर पैदा होती है, बड़ी होकर प्रेयसी, पत्नी, बहु बनती है और फिर माँ। इन सभी रिश्तो को वह बखूबी निभाती है। जीवन के हर मोड़ पर खुद को सबके पीछे रखती है। फिर भी आज तक वह उस सम्मान की अधिकारिणी नहीं बनी जो उसका हक है।
एक लड़की को जन्म के बाद उम्र के हर पड़ाव पर उससे प्यार और सम्मान देना सिखाया जाता है, पर यह नहीं सिखाया जाता कि वह भी उसी प्यार और सम्मान की समान हक़दार है। जब वह बहु बनकर ससुराल में कदम रखती है तो उसे महसूस कराया जाता है की उसका खुद का तो कोई सम्मान है ही नही । नाजो से पली बढ़ी वही लड़की का जीवन, मात्र सिन्दूर लगा लेने और मंगलसूत्र पहन लेने से, पूरी तरह बदल जाता है। परायो के बीच रहकर उसे खुद को उनका अपना साबित करना होता है। परिवार का हर व्यक्ति उससे प्यार और सम्मान की भरपूर आशा रखता है , पर क्या कभी उसे भी उतना ही मिल पता है ??
देखा और सोचा जाये तो सही मायनो में तो प्यार और सम्मान की पहली अधिकारिणी घर की बहु होती है। आप उसे ब्याह कर, गाजे बाजे के साथ अपने बेटे और पूरे परिवार की ज़िन्दगी में लाते है, बहुत प्रेम से उसका गृह प्रवेश करते है। आप तो सभी अपनों के बीच है, एक वही अकेली होती है जो कि परायो के बीच होते हुए भी उन्हें अपना समझती है। ऐसे में ससुराल वालो का कर्तव्य होता है कि उस से आशा न रखते हुए , उसे प्यार और सम्मान दे। पहले देने का सोचे फिर पाने का। कहा ही गया है कि " जो हम बोते है , वही हम काटते (पाते) है।
एक लड़की का बहु के रूप में दूसरा जन्म सा होता है क्यूंकि वह दुसरे परिवार में जाकर नए सिरे से उनके रीति -रिवाज़ , रस्में , तौर-तरीके इत्यादि सीखती है। वह एक कोरे स्लेट की भांति होती है , जो उसे सिखाया जाता है वही वह करती जाती है। उससे हमेशा कर्तव्यो में बेटी की तरह उम्मीद रखी जाती है और व्यवहार एक बहु ( परायी लड़की) की तरह किया जाता है , आप बबूल बो कर , आम की उम्मीद कैसे कर सकते है ?? यदि वह आपका व्यवहार आपको ही लौटाती है तो क्या गलत करती है ? इस तरह वह बढती दूरियों में एक अलग घर या अपने अलग आशियाने का सोचती है तो कुछ गलत नहीं करती है।
प्यार और सम्मान का पहला अधिकार पाने की अपेक्षा रखने वालें , पहले उसे देना तो सीख ले। जब तक आप उसे पूरे दिल से , सम्मान से पहले दिन से ही प्यार से नहीं अपनाएंगे तो यह दूरियां कभी मिट नहीं सकेंगी। यदि आप एक कदम उसकी और बढ़ाएंगे तो यक़ीनन वह चार कदम बढ़ाएगी क्युकी यही स्त्री है, उसका व्यक्तित्व है, भगवन ने उसे ऐसा ही बनाया है।
बहु को बेटी बनाकर तो देखिये, दूरियों का नामोनिशान तक नहीं होगा और वह एक नहीं दो परिवारों की बेटी बन जाएगी। प्यार और सम्मान के अधिकार की लडाई ही कहाँ रह जाएगी?
" जन्म-जन्मो से वह बस कर्तव्यो को पहचानती है,
प्यार और सम्मान मिले ,अधिकारों को कहाँ जानती है ?? "