1/14/2008

RISHTEY

एक शब्द तुम कहो , चार हम कहें
एक बात पर तुम अडे रहो ,
तो फिर बहस हम भी करें ,
कितना आसान है ना रिश्तो को तोड़ना ,
जो है काम अति मुश्किल वह है जोड़ना ।

वक्त होता नही कभी , निकालना पड़ता है....
थोडा सा ध्यान रिश्तो पे डालना पड़ता है ...

सीचना होता है प्यार से, पर करता कौन है ??
रिश्ते निभाने की बात आजकल सोचता कौन है ???

VAISSHALI...................


FRNDS UR COMMENTS R MY INSIPIRATION.......

1/10/2008

INTEZAAR

वह जाने जो करे इंतज़ार,

कैसे होता है यह मन बेक़रार

हर पल उठते - गीरते सवाल,

नजरो का तकना , पलको का न झपकना

ख्यालो में खो जाना

होश का फाख्ता होना

यह होता है इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार ........

A.B.C.D.

HI! FRIENDS CONFUSED BY TITLE?? NO NO DEAR I M NT GOING 2 TEACH U ENGLISH ALPHABETS..

THIS ARTICLE IS BASED ON MY 3 MONTHS EXPERIANCE & MANY TIMES LISTEN BY AMERICAN-INDIANS ON VISIT TO INDIA.VERY 1ST TIME I COME TO USA & WTHIN 10-15 DYS LOTS OF INDIAN BECAME MY FRIENDS. I ATTENDED 10-15 PARTIES TILL DATE.VERY MUCH INTERACTION WTH THEM AS NAVRATRI& DIWALI THIS YEAR I CELEBRATED WTH THEM.

AMERICAN BORN CONFUSED DESI[A.B.C.D]VERY COMMAN WORD FOR INDIAN-AMERICAN IN AMERICA...

PEOPLE CAME TO AMERICA 2 BROADEN THEIR BANK BALANCE. THEY ACHEIVED THEIR FINACIAL TARGET BUT SOME HOW THEY ARE STILL IN INDIA BY THEIR MIND. KEEP INCREASING BANK BALANCE AS IN SAME SPEED REDUCING BROADMIDEDESS THATS WHY THEY ARE STILL DESI. THEY EVEN DONT REALISE THAT INDIA HAS FAR AWAY AHEAD AFTER THEY REACHED TO USA. AFTER COMING HERE THEIR MIND'S ARE STILL INTHAT PHASE OF INDIA, THE TIME THEY COME.THEIR CHILDREN ARE GROWN UP/BORN HERE SO THEY ARE AMERICAN BORN, THEY KNOW INDIAN CULTURE BY CELEBRATING FESTIVALS ON HOLIDAYS OR GOING TO SUNDAY RELIGIOUS CLASS. THEIR MIND'S ARE BROADEN AS THEY BROUGHT UP HERE IN HALF INDIAN-HALF AMERICAN WAY.

GROWING UP CHILD IS MAJOR HEADACHE OF PARENTS. AS PARENTS ARE HAPPY TO HUG AMERICAN DOLLARS BUT DO NOT HAVE GUTTS TO HUG AN AMERICAN CULTURAL FREEDOM. THEY WANT THEIR CHILD TO USE"THE LAND OF OPPORTUNITY" IN STUDIES, BUISNESS & ALL, BUT SAME TIME THEY DID NOT GIVE THEM MUCH FREEDOM..

THEY ARE SO CONFUSED WHAT TO DO..?RATHER GIVING TRUE ADVICE&FREEDOM THEY WANT THEIR GIRLS TO GO GIRLS CONVENT SCHOOL. THEY FORCE THEIR CHILDREN TO ATTEND ALL CULTURE ACTIVITIES GOING IN MANDIR OR OTHER INDIAN'S PLACES SAKE OF APNI SANSKRITI..

BUT WHAT THEY ACHIEVED?? THEY STILL ARE IN THEIR TIME PERIOD. NOW INDIA IS ALSO SOOOO CHANGED. GRLS/BOYS OVER IN INDIA HVE GF/BF IN VERY YOUNG AGE..WHY PARENTS OVER HERE NOT LIKE THT THEIR KIDS HVE BF/GF?? JUST BECAUSE D SAKE OF TO TEACH THEM LESSONS OF MORALITY?? THEY DONT UNDERSTAND THE DIRECTION OF WINDS HAS CHANGED..

BETTER PART IS IN USA CULTURE IS AT LEAST PARENTS KNW MY DAUGHTER/SON IS HAVING DATE WITH HIS/HER BF/GF. NOT LIKE INDIA , THINGS HAPPEN BEHIND THE SCENE..

ACCEPT THE GLOBALITY। FREEDOM IS IN THE AIR। COMMON GIVE THEM BETTER ADVICE & LET THEM EXPLORE THE WORLD। TEACH THEM PROS &CONS OF EVERY EXPECT OF WHAT THEY ARE GOING TO DO। YOUR CHILD SAY LIE TO YOU, ITS BETTER YOU TEACH ABOUT CONTRACEPTIVE TO YOUR CHILD। WHY SO FEAR॥?? WHEATHER YOU BELIEVE OR NOT THEY DO WHATEVR THEY WANT। ITS BETTER TO PUT HAND ON THEIR BACK TO SUPPORT IN DIFFICULTIES RATHER THEN PUSHING THEM AWAY....

DEAR FRIENDS YOUR VALUABLE COMMENTS/SUGGESTIONS ARE WELCOME॥PLZ LEAVE UR COMMENT BELOW...


E DOST


थामा है हाथ तुमने
जब लगे हम डूबने,
अँधेरे में दीया जलाया
सही रास्ता है दीखलाया ।
जरुरत में आवाज़ देना
दौडे चले आयेंगे,
जाओ कहीं भी मगर ,
बन याद साथ जायेंगे ।
है दोस्ती का नाता हमारा
दील में कहीं हक है तुम्हारा,
हाथ यूहीं बढाते रहना
ये नाता सदा नीभाते रहना।
दोस्त है हम तुम्हारे,
सदा तुम्हारे संग रहेंगे,
तुम मानो या न मानो
प्यार यूँही हरदम करेंगे । ।

1/09/2008

प्रेम : भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष में

प्रेम : भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष में

आज भी भारतीय समाज अपने दृष्टिकोण को व्यापक नही कर सका है या यू कहे की हमने अपना एक दायरा बना लीया है. मस्तिष्क से कभी उस से आगे सोचने की ज़ुर्रत भी नही कर सकते है. मेरे मन में प्रेम को लेकर हमेशा से एक सवाल रहा है की प्यार में इतना बवाल क्यों? प्रेम भारतीय संस्क्र्ती का अटूट हिस्सा है, हमारे धर्म में प्रेम को सर्वोपरी माना है, फिर समाज में क्यों नही ? क्यों हर व्यक्ति चाहता है की उसका प्रेमी,प्रेम करे पर उस के हिसाब से . प्रेम वह है जहाँ कहा जाता है की ..उससे खुला छोड़ दो, यदी वह वापस तुम्हारे पास आता है तो वह हमेशा तुम्हारा है, और नही तो वह कभी तुम्हारा था ही नही..... पर इसे स्वीकार कोई नही करता है..क्यों हर भारतीय नारी पूजा तो सबसे पहले गणेशजी की करती है पर  पतिकी कामना हमेशा राम जी जैसे पुरुष की करती है.
सभी स्वार्थी है सिर्फ अपने बारे में सोचते है..''कृष्ण'' प्रेम को सही ठहराया जाता है वही ''बटुक्नाथ'' को गलत।

पर इस स्थिति की जिम्मेदार एक स्त्री ही है, यदी वह साक्षर हो और अपने पैरो पर खड़ी हो तो क्या फर्क पड़ता है बटुक्नाथ जैसे पुरुष का जींदगी में होना या न होना..अपने आप में साक्षर होना बहुत बड़ा बल है , फिर जुली, मिली कोई भी आये क्या फर्क पड़ता है? स्त्री स्वंतंत्राता की मिसालहै आज के दौर की फिल्म.." कभी अलविदा कहना " . हर स्त्री को अपने फैसले लेने का पूरा अधीकार है, उसकी ज़िंदगी उसकी है ..कोई और उसे नही चला सकता.. आज यह फिल्म पुरुष प्रधान समाज को बहुत बुरी ही लगेगी..पर वक़्त यही आ रहा है जहाँ पुरुष के होने न होने का बहुत ज्यादा असर किसी स्त्री पर नही होगा अर्थात् हर स्त्री अपनी ज़िंदगी, प्यार की तारनहार होगी न की उसका पति, पिता या भाई.....अपने प्रेम को स्वयम ही चुंनेगी .........