4/23/2016

वो बेटी

"वो बेटी"
जब बनने लगे पक्ष घरों में
पक्षपात हो ही जाता है
दो-चार बच्चों के बीच 
एक कुछ ज्यादा भाता है !
लडकों की श्रेणी ही अलग
सबसे ऊंचा ओहदा पाता है
बेटियों के बीच भी अक्सर
ऊंच - नीच का होता नाता है !
ऊंचे बैठे नीचे कहां देख पाते
नीचे से सब साफ नजर आता है !
बातें जो दिल में घर कर गयी
कहाँ वो निकल पाती हैं??
वो बेटी तो बेचारी
खून का घूंट पीकर रह जाती है !
एक गलती भी उसकी
सज़ा है बन जाती
भर्रायी सी आवाज में,
अश्क दबा जाती है.. !
वक्त-बेेवक्त की छींटाकशी
उसको परेशान कर जाती
चार लोगों के बीच फिर भी
वो मज़ाक बनायी जाती है
कर दरकिनार उसको
सबकी मौज हो जाती है !
सूने आंगन सा,
वो मन अपना पाती है
मौन खडे़ माँ-बाप को देख
दिल टूटता, आँखें सूखी जाती हैं !
हर बार उसी आँगन में आकर
वो बेटी फिर भी मुस्काती है
वो बेटी फिर भी मुस्काती है... !!
"वैशाली "
23/04/2016
शाम.. ४.००

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