न साथ हूँ , ना अकेली हूँ ,
यह कैसी अजब पहेली हूँ !
ना खुश हूँ ना ग़मगीन हूँ ,
बस खुद में ही तल्लीन हूँ !
ना पास हूँ ना दूर हूँ,
में कितनी मजबूर हूँ !
ना कोई अपना है ना कोई पराया,
सब खेल हैं , सब है माया !
ना सुलझी हूँ, ना उलझी हूँ ,
बस जाल में कहीं फँसी हूँ !
ना कोई दोस्त हैं ना कोई दुश्मन ,
किसे माने अपना, यह मन !
ना दुःख है ना कोई परेशानी ,
यह ज़िन्दगी लगती है बे-मानी !
ना कोई प्रश्न है ना कोई जवाब,
फिर भी दे ज़िन्दगी को हम हर-पल का हिसाब !!
------------------- वैशाली ------------------------------ -----
8/8/2013
यह कैसी अजब पहेली हूँ !
ना खुश हूँ ना ग़मगीन हूँ ,
बस खुद में ही तल्लीन हूँ !
ना पास हूँ ना दूर हूँ,
में कितनी मजबूर हूँ !
ना कोई अपना है ना कोई पराया,
सब खेल हैं , सब है माया !
ना सुलझी हूँ, ना उलझी हूँ ,
बस जाल में कहीं फँसी हूँ !
ना कोई दोस्त हैं ना कोई दुश्मन ,
किसे माने अपना, यह मन !
ना दुःख है ना कोई परेशानी ,
यह ज़िन्दगी लगती है बे-मानी !
ना कोई प्रश्न है ना कोई जवाब,
फिर भी दे ज़िन्दगी को हम हर-पल का हिसाब !!
------------------- वैशाली ------------------------------
8/8/2013
6 comments:
ना कोई प्रश्न है ना कोई जवाब,
फिर भी दे ज़िन्दगी को हम हर-पल का हिसाब !!
बहुत खूब
Thanks a lot Rakesh kaushik ji
Awesome.. Just Speechles..
I can say that.. this poem defines me.. Lolz
Thanks !
pata nahi sayad sabhi ko define kar rahi ho , aaj ke zamane mein...
nice tere dil ki baat ka 1% bhi likh saki
आपकी ये कविता दिल को छू जाती हैं एक तीस सी उठ जाती हैं
Thanks a lot Anuj ji
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