झीनी साड़ी पर मचले हम ,
पहन कर यूँ इतराए !
बड़ी शान से जो निकले ,
देख बदरिया मचलाए !
दिल आया यूँ हमपर उनका ,
बहके-बहके वो बरसाए !
कहाँ छिपाए हम खुद को,
कहीं 'मन्दाकिनी ' न बन जाये !!
लिया जो हाथों में चाय का प्याला ,
देख उन्होंने दिल अपना सम्हाला !
था यह शिकवा या शरारत , कहा-
तुमने बना दिया इसे ही 'मधुशाला ' !!
भीगे हम- तुम जो साथ में ,
मदहोशी सी छा जाये !
मस्ती के आलम में भीगा तन-मन ,
न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!
न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!
पहन कर यूँ इतराए !
बड़ी शान से जो निकले ,
दिल आया यूँ हमपर उनका ,
बहके-बहके वो बरसाए !
कहाँ छिपाए हम खुद को,
कहीं 'मन्दाकिनी ' न बन जाये !!
लिया जो हाथों में चाय का प्याला ,
देख उन्होंने दिल अपना सम्हाला !
था यह शिकवा या शरारत , कहा-
तुमने बना दिया इसे ही 'मधुशाला ' !!
भीगे हम- तुम जो साथ में ,
मदहोशी सी छा जाये !
मस्ती के आलम में भीगा तन-मन ,
न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!
न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!
8 comments:
good one :)
Wow :)
Achha Di , Mausam Ke Armaan likh diye ;)
8/10
Thanks a lot Anirvan , Sugandha ji & Anurag .......... :)
Keep commenting :)
very good vaishali, kuch khubsurat shabdo se tumne baarish ka sama bandh diya.
Thanks a lot Abhi ...... :)
आपकी ये रचना आपकी एक अलग कुछ हटकर लिखने की कला का घोतक हैं .dil की संजीदगी को आपने प्रस्तुत किया हैं
Thanks a lot Anuj ji
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