हमने बसाया एक बाग़ अरमानो का,
सोचा था आबाद करेंगे
क्या पता था एक अजनबी,
बन दोस्त उससे बर्बाद करेंगे!
टूट गए ख्वाब सारे,
बिखरा तिनका तिनका
मगर नहीं अफ़सोस उनको,
कसूर था जिनका !
ज़िन्दगी बिखरी लड़ मोती सी,
चाहा बहुत पिरोलू इसे
देखकर दोस्ती का आइना ,
धोखे की चक्की में हम पिसे !
ज़रा नहीं इल्म उनको
क्या यह भी एक मुखौटा है?
जानकार अनजान बनना
यह अदा है या धोखा है ??
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