7/28/2025

गांठ लगी डोर

इंसान के दोहरे चरित्र को मैं कभी समझ नहीं पाती. ऐसा नहीं है कि मैं समझना नहीं चाहती, चाहती हूं पर कोई इसे उजागर नहीं करना चाहता, सच कहना नहीं चाहते. हो सकता है शायद उनके पास बयां करने को शब्द ना हो. अपना सच कोई नहीं कहता, सच कहते ही उनके चरित्र का एक ऐसा पहलू सामने आ जाएगा, जिससे वो खुद सामना न करना चाहें. इसीलिए 'समाज', 'अच्छा नहीं लगता' इत्यादि बहानों के पीछे इसे छुपा दिया जाता है. "रिश्ते नहीं टूटने चाहिए", भी एक बडा बहाना है. 
      जिन रिश्तों के प्रति प्रेम न हो, जहां आपको उचित सम्मान न मिले, आप स्वयं बुराई करते हो - फिर ऐसा क्या है जो आपको बार बार वहाँ जाने पर मजबूर करता है? बेमन से ही सही, निभाने को मजबूर करता है. ऐसा भी नहीं है कि ये बात एक तरफ़ा हो - खटास दोनों जगह बराबर होती है पर  फिर भी रेंग कर ही सही चले जा रहे हैं.
मुझे सही वजह पता हो तो शायद मैं भी निभा जाऊँ पर सच से सामना कभी हो नहीं पाया. शायद ये सच कभी कोई कहेगा ही नहीं. गांठ लगी डोर को पकड़कर कितनी दूर चला जा सकता है? शायद इसीलिए गांठ लगे रिश्तों में मेरा विश्वास ही नहीं है. एक मजबूत रिश्ते के साथ आगे बढ़ने में विश्वास रखती हूँ. 
     अतीत जब वर्तमान पर हावी होने लगे तो न सिर्फ वो वर्तमान बल्कि भविष्य को भी खा लेता है. बात दो तरफ़ा हो तो मज़ा है. एक तरफ़ा तो बोझ बनने लगती है. किसी ने कुछ किया - हाँ किया मान लिया. कोई एहसान तले इतना दबा दिया  जाता है कि अपना किया तो बार बार नजर आता है और दिखलाया भी जाता है पर दूसरे का किया नजर नहीं आता - जो पहले कर दे दुनिया भी उसका किया ही याद रखती है. 
  आप किसी के लिए कितना भी कर लो कम पड़ ही जाता है. ये भी सच है कि लक्ष्मी जी की चकाचौंध बाकी अंधियारों को निगल जाती है. अपने साथ हुए अपमान के साथ साथ हर गलत को भुला देती है.
    बड़े बड़े ही रहेंगे ये मैं हमेशा से मानती भी हूँ और कहती भी हूँ पर बड़प्पन का क्या?  कोई उसको बात क्यूँ नहीं करता?   छोटों को झुकना चाहिए ये सत्य है और सबको याद भी रहता है पर बड़े अपने ego के साथ बड़प्पन भूल जाए तो भी सब चलता है - चित भी अपनी और पट्ट भी - ये कब तक चलेगा?  चलता ही है क्यूंकि बाकी लोग इसे स्वीकार लेते हैं, जो न स्वीकारे वो ज़माने में खराब.. 
  लोग भूल जाते हैं कि आने वाली पीढ़ी इसका अनुसरण करेगी और यही वो करती भी है और पीढ़ी दर पीढ़ी यही चलता चला जाता है और जो इसे स्वीकार करने से इंकार करे, उसके वज़ूद को ही नकार दिया जाता है. 
       मुझे नहीं पता कि गांठ लगे रिश्ते निभाना चाहिए कि नहीं? यदि हाँ, तो किस तरह? 
      ये सवाल का जवाब जानने की कोशिश रहेगी, ताकि शायद कोई और पहलू सामने आए और मेरी सोच पर प्रभाव करे, एक नया नज़रिया मिले रिश्तों को देखने का. अगर सच में किसी दिन किसी में सच कहने की हिम्मत आ जाए तो उस दिन जवाब जरूर मिल जाएगा. 

 इन्तजार है मुझे उस दिन का. 
धन्यवाद 
@®© दिल की कलम से