झीनी साड़ी पर मचले हम ,
पहन कर यूँ इतराए !
बड़ी शान से जो निकले ,
देख बदरिया मचलाए !
दिल आया यूँ हमपर उनका ,
बहके-बहके वो बरसाए !
कहाँ छिपाए हम खुद को,
कहीं 'मन्दाकिनी ' न बन जाये !!
लिया जो हाथों में चाय का प्याला ,
देख उन्होंने दिल अपना सम्हाला !
था यह शिकवा या शरारत , कहा-
तुमने बना दिया इसे ही 'मधुशाला ' !!
भीगे हम- तुम जो साथ में ,
मदहोशी सी छा जाये !
मस्ती के आलम में भीगा तन-मन ,
न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!
न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!
पहन कर यूँ इतराए !
बड़ी शान से जो निकले ,
दिल आया यूँ हमपर उनका ,
बहके-बहके वो बरसाए !
कहाँ छिपाए हम खुद को,
कहीं 'मन्दाकिनी ' न बन जाये !!
लिया जो हाथों में चाय का प्याला ,
देख उन्होंने दिल अपना सम्हाला !
था यह शिकवा या शरारत , कहा-
तुमने बना दिया इसे ही 'मधुशाला ' !!
भीगे हम- तुम जो साथ में ,
मदहोशी सी छा जाये !
मस्ती के आलम में भीगा तन-मन ,
न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!
न जाने मन हम कहाँ छोड़ आये !!