अलादीन के जादुई चिराग की कहानी तो हम सब ने पढ़ी है और पढने के बाद यही सोचा है कि काश ! के यह चिराग हमारे हाथ लग पाता। हम सभी उस चिराग को पाने की आशा रखते है, भगवन से उसे माँगते भी होंगे , पर क्या वास्तव में उसे पाना चाहते है ? यदि सचमुच में हम उसे पाना चाहते तो क्या कभी उसे खोजने की कोशिश नहीं करते ? क्या कभी हमने उसे खोजने की कोशिश की है ? बस ! चाहिए , मेहनत नहीं करनी है पाने के लिए।
क्या आपको पता है ? वह जादुई चिराग हम सभी पा सकते है . पहले यह जान लेते है कि वह जादुई चिराग है क्या- "हमारी हर तमन्ना पूरी करने वाला ". पर आपको यह नहीं पता कि वह तो मौजूद है , हमारे बीच, हमारे पास ही , फिर भी हमे दिखाई क्यों नहीं देता ? क्यूंकि यह उस हवा की भांति है जो चारो ओर मौजूद तो है पर दिखाई नहीं देती सिर्फ महसूस की जा सकती है , इसी तरह यह जादू का हम अनुभव ले सकते है, जादू स्वयं उत्पन्न कर सकते है पर देख नहीं सकते। उसे महसूस या उत्पन्न करने के लिए हमे थोड़ी कोशिश जरूर करनी पड़ती है।
खाने के बारे में तो आपको पता ही है कि जो हम खाते है उसका हमारे तन और मन पर प्रभाव पड़ता है। पर क्या आपको पता है कि जिन शब्दों का हम प्रयोग करते है उनका भी हमारे न सिर्फ तन , मन पर प्रभाव पड़ता है बल्कि हमारे जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है। इसी तरह हमारी सोच का भी हमारे तन मन और जीवन पर प्रभाव पड़ता है। सच्चाई यह है की हमारा संपूर्ण जीवन हमारी भाषा में ही निहित है। हमारे मुहँ से निकले हुए शब्द हवा में हमारे आस-पास ही रहते है हमेशा। कहा जाता है ना ... " काली जुबान है , या बोल हुआ सच हो जाना " इत्यादि इसी का एक भाग है। इसी तरह जैसा हम सोचते है, हमारा शरीर उसी सोच के आधार पर काम करता है।
जी हाँ ! यह जादुई चिराग है --" हमारी सकारात्मक सोच". जिंदगी का असल जादू है यह। हमारी ज़िन्दगी में वही होता जो सच में, जाने या अनजाने हम चाहते है। दुसरे शब्दों में कहा जाये तो हमारे अवचेतन मन का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सकारात्मक सोच कोई एक दिन का जादू नहीं है और न ही कोई बहुत कठिन प्रक्रिया ! बल्कि यह तो कुछ सरल उपाए है जिन्हें बस हमे अपने रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बनाना है।
एक बहुत छोटी सी बात है - हम अक्सर छोटे बच्चो के साथ किस तरह बात करते है ? या उन्हें हिदायते देते है? -- " यह मत करो, वोह मत करो, लग जाएगी, अरे टूट जायेगा, नही ...." इत्यादि। बच्चा पूरे दिन ज्यादातर क्या सुनता है ? न, नहीं , मत करो ... है ना ?? सब उसे बताते है क्या नहीं करना है। पर क्या हम कभी इसकी जगह उसे यह बताते है कि असल में उसके क्या करना चाहिए ? हम जाने -अनजाने उसे नकारात्मक सोच दे रहे होते है। इस से उसकी मानसिकता बदलने लगती है, उसे बडा होकर यह तो पता होता है कि क्या नहीं करना है परंतु करना क्या है वह नहीं पता चलता है। यही सोच हमारे जीवन में जादू लाने नहीं देती।
बस इसी सोच को तो बदलना है - यदि हमे पता हो कि हमे करना क्या है तो फिर कैसे करना है इसके अनेक रास्ते बन जायेंगे और हमारा पूरा ध्यान एक ही तरफ केन्द्रित होगा।
कहा जाता है ना- " जो दूसरो के लिए गढ़ढा खोदता है, वह स्वयं उसी गढ्ढे में गिरता है। " ठीक उसी तरह जिन शब्दों का प्रयोग हम दूसरो के लिए करते है, वही शब्द हमारे जीवन में प्रभाव डालते है। इसीलिए कहा गया है कि -कुछ भी बोलने से पहले हज़ार बार सोचना चाहिए। जब भी बोलो हमेशा अच्छा ही बोलो।
यदि हम अपनी सोच, विचारो और व्यवहार को सकरात्मक कर दे तो हमारा जीवन भी जादुई चिराग की भांति काम करने लगेगा।
अगले अंक में हम जानेंगे कि आप इस "जादुई चिराग" को अपने जीवन में किस तरह प्रज्वलित कर सकते है।
कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरूर भेजे।
धन्यवाद।
VAISSHALI S BEHANI
खाने के बारे में तो आपको पता ही है कि जो हम खाते है उसका हमारे तन और मन पर प्रभाव पड़ता है। पर क्या आपको पता है कि जिन शब्दों का हम प्रयोग करते है उनका भी हमारे न सिर्फ तन , मन पर प्रभाव पड़ता है बल्कि हमारे जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है। इसी तरह हमारी सोच का भी हमारे तन मन और जीवन पर प्रभाव पड़ता है। सच्चाई यह है की हमारा संपूर्ण जीवन हमारी भाषा में ही निहित है। हमारे मुहँ से निकले हुए शब्द हवा में हमारे आस-पास ही रहते है हमेशा। कहा जाता है ना ... " काली जुबान है , या बोल हुआ सच हो जाना " इत्यादि इसी का एक भाग है। इसी तरह जैसा हम सोचते है, हमारा शरीर उसी सोच के आधार पर काम करता है।
जी हाँ ! यह जादुई चिराग है --" हमारी सकारात्मक सोच". जिंदगी का असल जादू है यह। हमारी ज़िन्दगी में वही होता जो सच में, जाने या अनजाने हम चाहते है। दुसरे शब्दों में कहा जाये तो हमारे अवचेतन मन का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सकारात्मक सोच कोई एक दिन का जादू नहीं है और न ही कोई बहुत कठिन प्रक्रिया ! बल्कि यह तो कुछ सरल उपाए है जिन्हें बस हमे अपने रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बनाना है।
एक बहुत छोटी सी बात है - हम अक्सर छोटे बच्चो के साथ किस तरह बात करते है ? या उन्हें हिदायते देते है? -- " यह मत करो, वोह मत करो, लग जाएगी, अरे टूट जायेगा, नही ...." इत्यादि। बच्चा पूरे दिन ज्यादातर क्या सुनता है ? न, नहीं , मत करो ... है ना ?? सब उसे बताते है क्या नहीं करना है। पर क्या हम कभी इसकी जगह उसे यह बताते है कि असल में उसके क्या करना चाहिए ? हम जाने -अनजाने उसे नकारात्मक सोच दे रहे होते है। इस से उसकी मानसिकता बदलने लगती है, उसे बडा होकर यह तो पता होता है कि क्या नहीं करना है परंतु करना क्या है वह नहीं पता चलता है। यही सोच हमारे जीवन में जादू लाने नहीं देती।
बस इसी सोच को तो बदलना है - यदि हमे पता हो कि हमे करना क्या है तो फिर कैसे करना है इसके अनेक रास्ते बन जायेंगे और हमारा पूरा ध्यान एक ही तरफ केन्द्रित होगा।
कहा जाता है ना- " जो दूसरो के लिए गढ़ढा खोदता है, वह स्वयं उसी गढ्ढे में गिरता है। " ठीक उसी तरह जिन शब्दों का प्रयोग हम दूसरो के लिए करते है, वही शब्द हमारे जीवन में प्रभाव डालते है। इसीलिए कहा गया है कि -कुछ भी बोलने से पहले हज़ार बार सोचना चाहिए। जब भी बोलो हमेशा अच्छा ही बोलो।
यदि हम अपनी सोच, विचारो और व्यवहार को सकरात्मक कर दे तो हमारा जीवन भी जादुई चिराग की भांति काम करने लगेगा।
अगले अंक में हम जानेंगे कि आप इस "जादुई चिराग" को अपने जीवन में किस तरह प्रज्वलित कर सकते है।
कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरूर भेजे।
धन्यवाद।
VAISSHALI S BEHANI