महिलाओं का स्थान
ये शताब्दी महिलाओं की कही जाती है. अंतरिक्ष तक हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपना वर्चस्व स्थापित किया है. आज महिलाएं तेज गति से उन्नति करती प्रतीत होती है, पर क्या यह उतना ही सत्य है? जितना बताया जा रहा है? क्या जो दिख रहा है वह सत्य है? क्या अधिकांश महिलाओं की स्थिति यही है? या सिर्फ कुछ प्रतिशत महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आया है?
बहुत दूर के या बड़े बड़े उदाहरण मैं नहीं दूंगी किन्तु देखा जाए तो अमुक प्रतिशत को छोड़कर कमोबेश महिलाओं की स्थिति में ज्यादा कुछ सुधार नहीं हुआ है.
आपके अपने क्षेत्र में ही देखिए - आस पास कई जातियों के समाज मिलेंगे, माध्यम वर्ग - उच्च वर्ग के क्लब मिलेंगे.. क्या कभी आपने उनके नामों पर गौर किया है..?? 🤔
चाहे जातिगत समाज हो.. दलित, ठाकुर, राजपूत, अग्रवाल, माहेश्वरी, राजस्थानी इत्यादि या फिर लायंस, रोटरी क्लब, या शहर के नामचीन स्पोर्ट्स क्लब इत्यादि हो.. इनमें आप पाएंगे कि महिलाओं का एक अलग भाग होता है और उसका नाम अमूमन फ़लाना Ladies Club - ढ़िकाना ladies club होता है,par कहीं पर भी आपने फ़लाना पुरुष समाज (men's club) नाम सुना है.. नहीं ना.. वो कभी देखने नहीं मिलेगा.. क्योंकि समाज की पहचान पुरुष से ही होती है.. महिलाओं को अपनी पहचान बनानी होती..
अब आप सोचेंगे कि नाम अलग देने से क्या होता है? 🤔
किन्तु पूरे संगठन की कार्यप्रणाली देखे तो हर जगह समानता मिलेगी - Ladies Club या तो विभिन्न रचनात्मक प्रतियोगिताएं कराती है, पिकनिक और ज्यादा हुआ तो थोड़ा बहुत सामाजिक कार्य... बस यही. जबकि जितने भी बड़े निर्णय है समाज को लेकर, उनमें कहीं भी महिलाओं की हिस्सेदारी नहीं होती - भवन निर्माण का निर्णय से लेकर हर बड़े छोटे कार्यक्रम या समाज के लिए किए गए सुधारात्मक निर्णय, पुरुष सिर्फ अपने हाथ में रखता है.
ऐसा क्यूँ है?? 🤔
मुझे तो ये ladies club की अलग संकल्पना, न कभी समझ आई है न कभी स्वीकार हुई है. शायद इसीलिए समाज की निश्चित चलती धुरी में, मैं कभी अपने को जोड़ नहीं पायी.
यदि दूसरे नजरिए से देखा जाए तो इसमें पुरुष अकेला जिम्मेदार नहीं है - कहीं ना कहीं महिलाएं भी जिम्मेदार है.
सोचा जाए तो क्या महिलाओं ने अपनी क्षमता को उस हद तक बढ़ाया है क्या?
पढ़ लिख कर अपने को नौकरी तक सीमित करके ही खुश हो जाती हैं. क्या कभी घर में अपने पिता, पति, श्वसुर जी के सामने अपनी बात रखी या अपनी प्रतिभा/ इच्छा को जताया है? क्या कभी ये बताने की कोशिश की है कि मुझे इस क्षेत्र का ज्ञान है - मुझे इस चर्चा में शामिल कीजिए..??
पुरुष प्रधान समाज हमारी वास्तविकता रही है. उस समाज में जगह बनाने का प्रयास हमें स्वयं करना होगा. जब कोई अपनी जगह बनाने का प्रयास करता है तो लोग या टीम को नहीं बल्कि सिर्फ उस व्यक्ति को अपनी प्रतिभा न सिर्फ दिखानी होती है बल्कि अपने को उस लायक खरा जताने के लिए कई परीक्षाओं से गुजरना होता है - सिर्फ बोलने से कुछ नहीं मिलता है. यदि राजा का पुत्र अपनी योग्यता साबित नहीं करता तो वो भी राजगद्दी का अधिकारी नहीं होता है.
सिर्फ महिला सशक्तीकरण का झंडा उठाकर चल देने से कुछ नहीं होगा बल्कि साबित करना होगा कि उस झंडे को उठाकर चलने की क्षमता है हम में...!!
© ® Vaisshali
10/4/2021..